The delayed construction of the railway flyover at Ghugus Railway Gate G-39 has turned into a major traffic bottleneck. Daily commuters are facing severe inconvenience while authorities continue to ignore the situation.

 द्योगिक नगरी के राज्य महामार्ग क्रमांक 7 पर स्थित घुग्घुस-वणी-चंद्रपुर मुख्य मार्ग का G-39 रेलवे गेट अब राहगीरों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है। यह मार्ग जहां एक ओर चंद्रपुर और यवतमाल को जोड़ता है, वहीं दूसरी ओर वेकोलि (WCL) के कोयला परिवहन के लिए भी जीवनरेखा बना हुआ है। लेकिन इसी जीवनरेखा ने आम नागरिकों की जिंदगी में रुकावटों का जाल बुन दिया है।

हर दिन 15 से 20 बार इस गेट को बंद किया जाता है, जिससे दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग जाती हैं। यह रेलवे लाइन न सिर्फ सिटीपीएस थर्मल पॉवर स्टेशन बल्कि देश के अन्य राज्यों के बिजली घरों तक कोयले की आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन इसी आपूर्ति के नाम पर आमजन के जीवन में असुविधा की कोयले जैसी कालिमा फैल चुकी है।

तीन साल, 30 करोड़ और अधूरा पुल—क्या यही विकास है?

इस समस्या के समाधान हेतु प्रशासन ने तीन वर्ष पूर्व लगभग 30 करोड़ रुपये की लागत से T-शेप फ्लाईओवर निर्माण कार्य की घोषणा की थी। लेकिन जिस पुल को अब तक जनता की सेवा में आ जाना चाहिए था, वह अभी भी निर्माणाधीन अवस्था में पड़ा है। तय समयसीमा खत्म हो चुकी है, लेकिन निर्माण की रफ्तार कछुआ चाल से भी धीमी नजर आ रही है।

रेलगाड़ी आई, गेट बंद—मरीज की मौत, जनता बेहाल

G-39 रेलवे गेट की बार-बार बंदी से हाल ही में एक दुखद घटना सामने आई, जब एक मरीज की एम्बुलेंस में समय पर अस्पताल न पहुंच पाने से मृत्यु हो गई। यह सिर्फ एक उदाहरण है; रोजाना सैकड़ों राहगीर, छात्र, कर्मचारी और व्यापारी इस बाधा का सामना कर रहे हैं। घंटों ट्रैफिक में फंसने के कारण न केवल समय की बर्बादी होती है, बल्कि कई बार आपातकालीन सेवाएं भी बाधित होती हैं।

प्रशासन और राजनेता चुप क्यों?

स्थानीय नागरिकों द्वारा कई बार प्रशासन को ज्ञापन सौंपे गए हैं, लेकिन अब तक कोई संतोषजनक समाधान सामने नहीं आया है। सबसे हैरानी की बात यह है कि जिला प्रशासन और स्थानीय निकाय इस गंभीर समस्या पर मौन साधे हुए हैं। वहीं, राजनीतिक दलों के नेता केवल होर्डिंग्स और बधाई संदेशों के माध्यम से अपने अस्तित्व का प्रदर्शन करते नजर आते हैं, लेकिन G-39 फ्लाईओवर के धीमे निर्माण पर उनकी जुबान बंद है।

जनता का सब्र टूटा—आंदोलन की चेतावनी

स्थानीय लोग अब इस स्थिति से त्रस्त हो चुके हैं। नागरिकों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है और वे अब आंदोलन की राह पकड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। उनकी मांग स्पष्ट है—या तो फ्लाईओवर का कार्य तत्काल पूरा किया जाए या इस मार्ग पर रेलवे गेट के संचालन के वैकल्पिक उपाय अपनाए जाएं।


औद्योगिक नगरी की यह तस्वीर न केवल विकास के खोखले दावों पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस तरह आम जनता को सुविधाओं के नाम पर आश्वासन और तकलीफें मिल रही हैं। G-39 रेलवे गेट एक प्रतीक बन गया है—प्रशासनिक उदासीनता, राजनैतिक चुप्पी और जनता की पीड़ा का।

अब सवाल उठता है—क्या ये गेट कभी खुलेगा, बिना जनता की जिंदगी को रोककर?