Ghugus Railway Flyover | तीन दशक पुराना लोहा पुल और तीन साल से अधूरा फ्लाईओवर – कब मिलेगी राहत?
Residents of Ghugus face daily hardships as they are forced to use a deteriorating iron bridge while the construction of a promised railway flyover remains incomplete. Read how delays and negligence continue to affect local lives.
चंद्रपुर जिले की औद्योगिक नगरी घुग्घुस वर्षों से बुनियादी ढांचे की लचर स्थिति और राजनैतिक उदासीनता की मार झेल रही है। करीब तीन दशक पूर्व वेकोलि (WCL) द्वारा लाखों रुपये की लागत से रेलवे स्टेशन समीप और शालिकराम नगर सटे एक लोहा पुल का निर्माण किया गया था, जिसका उद्देश्य था कि G-39 रेलवे गेट के बंद होने की स्थिति में नागरिक निर्बाध आवागमन कर सकें। लेकिन विडंबना यह रही कि आज वही पुल अपनी जर्जर अवस्था के चलते पूर्णतः बंद कर दिया गया है और विकल्पस्वरूप निर्माणाधीन फ्लाईओवर भी वर्षों से अधूरा पड़ा है।
तीन दशक पुराना पुल और सुरक्षा
इस पुल से शहर के वेकोलि तथा परिसर के नागरिकों को रेलवे गेट बंद रहने पर राहत मिलती थी। परंतु समय की मार ने इस पुल को जर्जर बना दिया है – सीमेंट उखड़ चुका है, लोहे के हिस्सों में जंग लग चुका है। सुरक्षा कारणों से रेलवे विभाग ने इसे नागरिकों के लिए बंद कर दिया है। पर सवाल यह है कि जब पुल की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी, तो समय रहते मरम्मत या नया निर्माण क्यों नहीं किया गया?
राजनीति का अखाड़ा बना पुल
स्थानीय भाजपा और कांग्रेस अन्य दलों के नेताओं ने इस पुल को राजनीति का मंच बना दिया। कई बार आंदोलन हुए, अखबारों में श्रेय लेने की होड़ लगी रही। हाल ही में क्षेत्र के विधायक किशोर जोरगेवार ने जिला कलेक्टर कार्यालय में बैठक आयोजित कर पुल को पुनः शुरू करने का आश्वासन तो दिलवाया, लेकिन असली राहत तो रेलवे फ्लाईओवर से मिलनी थी – वह आज भी अधूरी है।
30 करोड़ की फ्लाईओवर योजना – लेकिन काम कछुआ चाल में
घुग्घुस-वणी मार्ग पर लगभग 30 करोड़ रुपये की लागत से पिछले तीन वर्षों से फ्लाईओवर ब्रिज का निर्माण चल रहा है। तय अवधि बीत चुकी है, लेकिन ब्रिज अभी तक पूरा नहीं हुआ। नतीजतन, G-39 रेलवे गेट दिन-रात कई बार बंद होने से राहगीरों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर एम्बुलेंस, स्कूल बसें और व्यापारी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
हाल ही में एक दर्दनाक घटना में रेलवे गेट बंद रहने के कारण समय पर अस्पताल न पहुँच पाने से एक मरीज की एम्बुलेंस में ही दम तोड़ना पड़ा। यह घटना न केवल प्रशासन बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र पर सवाल खड़ा करती है।
नेताओं की चुप्पी और साठगांठ के आरोप
चर्चा है कि कुछ नेताओं ने निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों से साठगांठ कर अपने कार्यकर्ताओं को रोजगार दिलवाया है। इसके बदले वे निर्माण की धीमी गति पर सवाल नहीं उठा रहे। नतीजा – जनता को भारी वाहनों के कारण ट्रैफिक जाम और गेट बंदी की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
» रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज का शीघ्र निर्माण कार्य पूर्ण हो – जिससे भारी औऱ छोटे वाहन, आपातकालीन सेवाएं और सामान्य जनता को राहत मिले।
» जर्जर लोहा पुल की मरम्मत केवल अस्थाई समाधान है, इसका उपयोग मोटरसाइकिल तक ही सीमित रहेगा।
» भारी वाहनों के लिए वैकल्पिक मार्ग तय किए जाएं ताकि मुख्य मार्ग पर ट्रैफिक जाम से निजात मिले।
जनता के सब्र का इम्तिहान
जनता अब सवाल उठा रही है – जब जान जोखिम में पड़ रही है, जब रोज़गार, पढ़ाई और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें इस गेट और पुल की बंदी से बाधित हो रही हैं, तब क्यों नेता केवल श्रेय की राजनीति में व्यस्त हैं?
घुग्घुस की जनता को अब केवल आश्वासनों की नहीं, परिणामों की ज़रूरत है। अधूरी परियोजनाएं, राजनीतिक स्वार्थ और प्रशासनिक लापरवाही का घातक मिश्रण यहां विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा बन गया है। यदि शीघ्र ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दिनों में यह मुद्दा न केवल स्थानीय जनआक्रोश को जन्म देगा बल्कि राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।
"विकास की तस्वीर जब तक अधूरी है, तब तक हर दावा एक दिखावा है!"